भारतीय रुपये में इस साल लगातार उतार-चढ़ाव जारी है। गुरुवार को इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 7 पैसे कमजोर होकर 88.69 प्रति डॉलर पर पहुंच गया। यह लगातार तीसरा कारोबारी सत्र रहा जब रुपये ने डॉलर के मुकाबले कमजोरी दिखाई। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर की मजबूती और घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट ने रुपये पर दबाव बढ़ाया है।
डॉलर की मजबूती बनी परेशानी
अमेरिकी डॉलर इन दिनों वैश्विक बाजार में मजबूत बना हुआ है। डॉलर इंडेक्स, जो छह प्रमुख करेंसीज़ के मुकाबले डॉलर की स्थिति बताता है, 0.02% बढ़कर 99.51 पर पहुंच गया। इस बढ़त का असर सिर्फ रुपये पर नहीं, बल्कि एशिया की कई अन्य मुद्राओं पर भी पड़ा है।
वहीं, भारत-अमेरिका ट्रेड डील को लेकर जारी बातचीत ने थोड़ी राहत जरूर दी है, जिससे रुपया अपने रिकॉर्ड निचले स्तर से ऊपर बना हुआ है।
फॉरेक्स मार्केट में हलचल
ट्रेडिंग की शुरुआत में रुपया 88.66 पर खुला, लेकिन कुछ ही मिनटों में 88.69 प्रति डॉलर पर फिसल गया।
फॉरेक्स ट्रेडर्स का कहना है कि बाजार में विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और ग्लोबल अस्थिरता के कारण रुपये को दबाव झेलना पड़ रहा है।
शेयर बाजार में भी कमजोरी
रुपये की गिरावट के साथ-साथ घरेलू शेयर बाजारों में भी सुस्ती देखने को मिली।
- बीएसई सेंसेक्स 205 अंक गिरकर 84,261.43 पर बंद हुआ।
- एनएसई निफ्टी-50 भी 61 अंक गिरकर 25,814.65 पर कारोबार कर रहा था।
वहीं, ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें 0.13% घटकर 62.63 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं।
बाजार में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली जारी है। बुधवार को एफआईआई ने 1,750 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे रुपये पर अतिरिक्त दबाव बना।
किन कारणों से तय होगी रुपये की दिशा
मार्केट विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये की दिशा अब पूरी तरह वैश्विक संकेतों पर निर्भर करेगी।
आने वाले दिनों में रुपये पर इन तीन चीजों का असर रहेगा —
- अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड्स की यील्ड्स
- क्रूड ऑयल की कीमतों में बदलाव
- एफआईआई की निवेश गतिविधि
अगर डॉलर मजबूत रहता है और विदेशी निवेशक बिकवाली जारी रखते हैं, तो रुपया और कमजोर हो सकता है। हालांकि, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते या निर्यात से जुड़ी किसी सकारात्मक खबर से रुपये को थोड़ी स्थिरता मिल सकती है।