दुनिया की अर्थव्यवस्था एक नए मोड़ पर है। जहां कभी अमेरिकी डॉलर को वैश्विक शक्ति का प्रतीक माना जाता था, वहीं अब केंद्रीय बैंक धीरे-धीरे अपनी नीतियां बदल रहे हैं। 2025 में, लगभग हर प्रमुख देश का केंद्रीय बैंक सोने के भंडार को बढ़ा रहा है — और यह बदलाव महज निवेश नहीं, बल्कि आर्थिक सुरक्षा की रणनीति बन चुका है।
900 टन से ज्यादा सोना खरीदे जाने की संभावना
विश्व स्वर्ण परिषद (World Gold Council) के ताजा सर्वे के मुताबिक, साल 2025 में केंद्रीय बैंक सामूहिक रूप से करीब 900 टन सोना खरीद सकते हैं। यह लगातार चौथा साल होगा जब वैश्विक स्तर पर औसत से अधिक सोना खरीदा जाएगा। 76% बैंकों ने माना कि अगले पांच सालों में उनके सोने के भंडार में बढ़ोतरी होगी, जबकि 73% को उम्मीद है कि अमेरिकी डॉलर की हिस्सेदारी घटेगी।
सोना क्यों बना ‘सुरक्षित शरणस्थल’
मौजूदा वैश्विक माहौल में महंगाई चरम पर है और अर्थव्यवस्था की रफ्तार 2% से भी कम है। ऐसे में देश “सेफ एसेट्स” की ओर लौट रहे हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सोने में किसी भी प्रकार का डिफॉल्ट रिस्क नहीं होता, यह महंगाई या प्रतिबंधों से प्रभावित नहीं होता। यही कारण है कि इसे सबसे स्थिर और भरोसेमंद संपत्ति माना जा रहा है।
डॉलर से दूरी, नीति की स्वतंत्रता की ओर कदम
इन्फॉर्मिक्स रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मनोरंजन शर्मा का कहना है कि केंद्रीय बैंक अब डॉलर पर निर्भरता घटा रहे हैं ताकि वित्तीय नीतियों में स्वतंत्रता मिल सके। उन्होंने बताया कि “सोने का भंडार बढ़ाना केवल सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर आर्थिक नीतियों की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती
IMF के COFER आंकड़ों के अनुसार, अमेरिकी डॉलर अभी भी वैश्विक भंडार का लगभग 58% हिस्सा है। हालांकि, यह हिस्सा लगातार घट रहा है। रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और अन्य देशों पर संभावित आर्थिक कार्रवाई ने कई देशों को सतर्क कर दिया है। अब देश अमेरिकी मुद्रा पर निर्भरता घटाकर सोना अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं।
चीन और ब्रिक्स देशों की भूमिका
चीन इस परिवर्तन की अगुवाई कर रहा है। उसका केंद्रीय बैंक — पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना — लगातार 18 महीनों से अपने सोने के भंडार में इज़ाफ़ा कर रहा है। विशेषज्ञों के मुताबिक, यह कदम अमेरिकी प्रतिबंधों से सुरक्षा और ब्रिक्स+ देशों के बीच गैर-डॉलर व्यापार को बढ़ावा देने की रणनीति का हिस्सा है।
निवेशकों का भरोसा भी बढ़ा
सोने की बढ़ती मांग ने इसकी कीमतों को स्थिर बनाए रखा है, भले ही वैश्विक ब्याज दरें ऊंची हों। संस्थागत और खुदरा निवेशक अब गोल्ड ETF, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और खनन कंपनियों के शेयरों में निवेश बढ़ा रहे हैं।
सोना बना भविष्य की मौद्रिक स्थिरता का प्रतीक
स्पष्ट है कि 21वीं सदी की नई आर्थिक दौड़ में सोना फिर से केंद्रीय भूमिका निभा रहा है। डिजिटल मुद्रा, राजनीतिक तनाव और महंगाई की चुनौतियों के बीच अब सोना सिर्फ धातु नहीं, बल्कि मौद्रिक स्वतंत्रता का प्रतीक बन चुका है।