भारत-पाकिस्तान मैच पर सियासी बवाल, शिवसेना (UBT) ने कहा- ‘राष्ट्रद्रोह’

14 सितंबर को दुबई में होने वाले भारत-पाकिस्तान एशिया कप मुकाबले से पहले ही सियासत गरमा गई है। शिवसेना (UBT) के मुखपत्र सामना ने अपने संपादकीय में इस मैच को केवल खेल नहीं बल्कि “राष्ट्रद्रोह” जैसा कदम करार दिया है। पार्टी का कहना है कि हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान से क्रिकेट खेलना देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।

आतंकी हमलों की पीड़ा का हवाला

संपादकीय में पहलगाम हमले का विशेष जिक्र किया गया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिक मारे गए थे। सामना ने लिखा है कि ऐसे हालात में पाकिस्तान के साथ खेलना उन परिवारों का अपमान है, जिन्होंने अपने प्रियजन खोए। यह केवल एक खेल नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और संवेदनशील भावनाओं से जुड़ा मामला है।

‘सुविधाजनक राष्ट्रवाद’ पर सवाल

शिवसेना ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह पर निशाना साधा। संपादकीय के मुताबिक, सरकार ने “सुविधाजनक हिंदुत्व” और “सुविधाजनक राष्ट्रवाद” की नीति अपनाई है, जहां जनता की भावनाओं को चुनावी और आर्थिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। क्रिकेट के जरिए बड़े पैमाने पर कारोबार और सौदे होते हैं, और अंततः इसका लाभ सत्ता प्रतिष्ठान को मिलता है।

वादों और हकीकत का अंतर

लेख में सरकार के पुराने वादों और मौजूदा नीतियों के बीच फर्क को उजागर किया गया। सामना ने कहा कि सत्ता में आने से पहले पाकिस्तान को सबक सिखाने और कड़े कदम उठाने की घोषणाएं की गईं, लेकिन अब वही सरकार पाकिस्तान से खेल कूटनीति कर रही है। पार्टी का आरोप है कि घरेलू राजनीति में राष्ट्रवाद के नारे लगाए जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय दबाव आने पर रणनीति बदल दी जाती है।

अंतरराष्ट्रीय दबाव और वैश्विक ताकतें

संपादकीय में अमेरिका और चीन की भूमिकाओं पर भी प्रकाश डाला गया। कहा गया कि अंतरराष्ट्रीय दबाव और वैश्विक परिदृश्य ने भारत को मजबूर किया कि वह पाकिस्तान के साथ खेल संबंध जारी रखे। लेख ने तंज कसा कि अगर बालासाहेब ठाकरे के जमाने में यह हालात होते तो क्या क्रिकेट को इतना महत्व दिया जाता?

जनता की भावनाओं से बड़ा क्या है?

संपादकीय ने सवाल उठाया कि क्या आर्थिक लाभ और कूटनीतिक मजबूरियां जनता की भावनाओं से बड़ी हो सकती हैं? क्या खेल उन शहीद परिवारों का दर्द मिटा सकता है जिन्होंने अपने प्रिय आतंकवाद में खो दिए? सामना का कहना है कि यह केवल क्रिकेट का मुद्दा नहीं, बल्कि न्याय, सम्मान और आत्मगौरव से जुड़ा सवाल है।

खेल या राष्ट्रहित?

संपादकीय ने स्पष्ट संदेश दिया कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना देश की जनता की भावनाओं की अनदेखी है। लेख ने पाठकों से भी अपील की कि वे केवल खेल का रोमांच न देखें बल्कि यह भी समझें कि इस तरह के फैसलों का देश की प्रतिष्ठा और नैतिक मूल्यों पर क्या असर पड़ता है। सामना का मानना है कि यदि सरकार और खेल संस्थाएं जनता की संवेदनाओं को गंभीरता से नहीं लेंगी तो खेलों के जरिए बनने वाली शांति और सौहार्द की बातें केवल खोखले नारे बनकर रह जाएंगी।

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