पंजाब की पवित्र धरती पर आज का दिन इतिहास और श्रद्धा से भरा रहा। सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी का 538वां विवाह पर्व भव्य नगर कीर्तन के रूप में मनाया गया। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु संगत ने अपनी हाज़िरी भरते हुए “सतनाम वाहेगुरु” का जाप किया और गुरु परंपरा के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई।
सुलतानपुर लोधी से बटाला तक यात्रा
सुबह सुलतानपुर लोधी स्थित गुरुद्वारा श्री बेर साहिब से नगर कीर्तन की शुरुआत हुई।
- पांच प्यारे साहिबान की अगुवाई में यह यात्रा आगे बढ़ी।
- गुरु ग्रंथ साहिब जी का पावन स्वरूप फूलों से सजी पालकी में सजाया गया।
- जयकारों और शबद कीर्तन के स्वर से पूरा माहौल गूंज उठा।
नगर कीर्तन का महत्व
यह नगर कीर्तन सिर्फ आस्था का प्रतीक नहीं बल्कि इतिहास की झलक भी है। 18 वर्ष की आयु में गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी माता सुलखनी जी से हुआ था। उस समय उनकी बारात सुलतानपुर लोधी से रवाना होकर बटाला पहुंची थी। उसी परंपरा को जीवित रखने के लिए हर वर्ष नगर कीर्तन उसी ऐतिहासिक मार्ग से गुज़रता है।
श्रद्धालुओं का उमड़ा सैलाब
आज सुबह से ही श्रद्धालु नगर कीर्तन में शामिल होने के लिए उमड़ पड़े। महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग सभी फूलों की वर्षा कर पालकी साहिब का स्वागत करते दिखे। रास्ते में जगह-जगह लंगर और सेवा के आयोजन किए गए।
SGPC का आयोजन और संदेश
इस आयोजन की अगुवाई शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने की। सचिव प्रताप सिंह ने संगत को विवाह पर्व की बधाई दी और कहा कि गुरु नानक देव जी ने समझाया कि इंसान गृहस्थ जीवन जीते हुए भी प्रभु भक्ति में लीन रह सकता है। यही संदेश आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है।
संतों और हस्तियों की मौजूदगी
नगर कीर्तन में बड़ी संख्या में धार्मिक संत, समाजसेवी और SGPC के पदाधिकारी भी शामिल हुए। संत बाबा लीडर सिंह, संत बाबा हरजीत सिंह, SGPC के कई सदस्य और स्थानीय श्रद्धालुओं ने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को मानवता और भाईचारे का संदेश बताया।
स्वागत से सजा पूरा मार्ग
नगर कीर्तन के मार्ग में हर गांव और कस्बे ने संगतों ने फूल बरसाकर पालकी साहिब का स्वागत किया। तलबंडी पुल चौक, सैफलाबाद, ढिल्लवां, बाबा बकाला और अन्य स्थानों पर श्रद्धालुओं ने विशेष सजावट की थी।
बटाला में समापन
आज रात यह नगर कीर्तन गुरुद्वारा सत्कारतारियां साहिब, बटाला में संपन्न होगा। संगतों के लिए यह अवसर सिर्फ एक धार्मिक जुलूस नहीं बल्कि गुरु नानक देव जी और माता सुलखनी जी के पवित्र विवाह की यादों से जुड़ा आध्यात्मिक अनुभव है।