मंगलवार, 23 सितंबर को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इतिहास के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया। शुरुआती कारोबार में यह 88.49 प्रति डॉलर तक गिरा, जबकि सोमवार को यह 88.31 पर बंद हुआ था। लगातार डॉलर की मजबूती और एशियाई मुद्राओं की कमजोरी की वजह से रुपये पर दबाव बढ़ा।
शुरुआती कारोबार में झटका
दिन की शुरुआत में रुपया 88.41 पर खुला। लेकिन थोड़े ही समय में यह 88.46 तक फिसल गया। करेंसी मार्केट के जानकारों का कहना है कि विदेशी निवेशक डॉलर की ओर रुख कर रहे हैं, जिसकी वजह से रुपये पर दबाव आ रहा है।
क्यों गिरा रुपया?
- अमेरिकी फैसलों का असर – अमेरिका ने भारतीय निर्यात पर टैरिफ बढ़ा दिया है और H1B वीज़ा की फीस को 1 लाख डॉलर कर दिया है। इससे भारत के आईटी सेक्टर और निर्यातकों को सीधा झटका लगा है।
- एशियाई करेंसीज़ कमजोर – युआन, येन जैसी अन्य एशियाई मुद्राओं में गिरावट आई है, जिसने रुपये को भी प्रभावित किया।
- डॉलर की मजबूती – निवेशक अस्थिर माहौल में सुरक्षित निवेश के लिए डॉलर खरीद रहे हैं। इससे डॉलर मजबूत हुआ और रुपया कमजोर हो गया।
आम लोगों पर असर
रुपये की गिरावट का असर सीधे आम लोगों की जेब पर पड़ेगा।
- तेल आयात महंगा होने से पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं।
- विदेश यात्रा और पढ़ाई के खर्च और ज्यादा बढ़ जाएंगे।
- हालांकि निर्यातकों को इसका फायदा हो सकता है, क्योंकि डॉलर की कमाई को बदलने पर उन्हें ज्यादा रुपये मिलेंगे।
आगे क्या होगा?
विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल रुपये पर दबाव बना रहेगा। अगर विदेशी निवेश बढ़ा और ग्लोबल हालात सुधरे, तो रुपया कुछ संभल सकता है। लेकिन अमेरिकी नीतियों और डॉलर की मजबूती देखते हुए निकट भविष्य में स्थिति चुनौतीपूर्ण रहेगी।