ब्रिटेन में अवैध प्रवासन के खिलाफ बगावत: लंदन की सड़कों पर उतरे लाखों लोग

ब्रिटेन में प्रवासन का मुद्दा अब सड़कों पर उबाल बनकर सामने आ गया है। 13 सितंबर को राजधानी लंदन के व्हाइटहॉल क्षेत्र में करीब एक लाख लोग जमा हुए और अवैध प्रवासियों को देश से बाहर निकालने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन के पास मार्च निकालते हुए “हम अपना देश वापस चाहते हैं” जैसे नारे लगाए।


टॉमी रॉबिन्सन बने रैली का चेहरा

यह विरोध प्रदर्शन विवादित राष्ट्रवादी नेता टॉमी रॉबिन्सन की अगुवाई में हुआ। इंग्लिश डिफेंस लीग के संस्थापक रह चुके रॉबिन्सन ने कहा कि यह “ब्रिटेन में सांस्कृतिक क्रांति का पहला कदम” है। उन्होंने आरोप लगाया कि अवैध अप्रवासियों को स्थानीय नागरिकों से अधिक अधिकार दिए जा रहे हैं, जो जनता के साथ अन्याय है।


एलॉन मस्क का अप्रत्याशित संदेश

इस रैली की खासियत यह रही कि अमेरिकी अरबपति एलॉन मस्क ने भी वीडियो कॉल के ज़रिए इसमें भाग लिया। मस्क ने ब्रिटिश संसद को भंग करने और नई सरकार की मांग रखी। उन्होंने कहा कि अगर प्रवासन की मौजूदा लहर नहीं रुकी तो ब्रिटेन अपनी पहचान खो देगा। उनकी मौजूदगी से यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिकी दक्षिणपंथी विचारधारा अब ब्रिटेन के आंदोलनों से जुड़ने लगी है।


काउंटर-रैली ने दिया करारा जवाब

इसी बीच ‘स्टैंड अप टू रेसिज्म’ संगठन ने लगभग 5,000 लोगों की एक अलग रैली निकाली। इन लोगों ने “शरणार्थियों का स्वागत है” और “फासिज्म को हराओ” जैसे नारे लगाए। निर्दलीय सांसद डायने एबॉट ने मंच से कहा कि “हमें प्रवासियों के साथ खड़ा होना चाहिए और झूठे प्रचार को नकारना चाहिए।”


पुलिस की सख्ती और झड़पें

मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने सुरक्षा के लिए 1,600 अधिकारियों को तैनात किया। हालांकि प्रदर्शन लंबे समय तक शांतिपूर्ण रहा, लेकिन बाद में कुछ समूहों ने पुलिस पर बोतलें फेंकी और बैरिकेड तोड़ने की कोशिश की। इसमें 26 अधिकारी घायल हुए और 25 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया।


राजनीतिक असर और आगे की राह

लंदन की यह रैली ब्रिटेन की राजनीति में बड़ा संदेश छोड़ गई है। प्रवासन अब सिर्फ सामाजिक मुद्दा नहीं बल्कि चुनावी बहस का अहम हिस्सा बन चुका है। विशेषज्ञों का मानना है कि दक्षिणपंथी विचारधारा और Reform UK जैसी पार्टियां आने वाले समय में अधिक लोकप्रिय हो सकती हैं।


यह साफ हो चुका है कि लंदन का यह आंदोलन ब्रिटेन की राजनीति की दिशा बदल सकता है। अब सवाल यह है कि क्या यह आक्रोश सिर्फ सड़कों तक सीमित रहेगा या संसद तक पहुंचेगा।

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