ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी को झटका, फेडरल कोर्ट ने आयात शुल्क को अवैध बताया

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी को बड़ा झटका लगा है। फेडरल अपील कोर्ट ने उन टैरिफ पर रोक लगा दी है जिन्हें ट्रंप ने ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ घोषित करके लागू किया था। अदालत का कहना है कि राष्ट्रपति को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते। यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब ट्रंप बार-बार दावा कर रहे थे कि वे कांग्रेस की मंजूरी के बिना भी विदेशी सामानों पर टैक्स लगा सकते हैं।

ट्रंप ने इस साल 2 अप्रैल को ‘लिबरेशन डे’ बताते हुए कई देशों पर भारी-भरकम टैरिफ लगा दिए थे। लगभग सभी ट्रेड पार्टनर्स पर 10% बेसलाइन टैरिफ लगाया गया और जिन देशों के साथ व्यापार घाटा ज्यादा था उन पर 50% तक शुल्क थोप दिया गया। हालांकि, बाद में उन्होंने 90 दिनों के लिए इन टैरिफ को निलंबित किया और बातचीत का मौका दिया। जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने समझौता कर लिया लेकिन लाओस और अल्जीरिया जैसे देशों पर 30-40% तक का टैक्स जारी रहा।

राष्ट्रपति ने इसके लिए 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकोनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का सहारा लिया और लंबे समय से चल रहे ट्रेड डेफिसिट को ही ‘राष्ट्रीय आपातकाल’ घोषित कर दिया। फरवरी में उन्होंने कनाडा, मैक्सिको और चीन पर भी यही कानून लगाकर टैरिफ थोप दिए। उनका तर्क था कि ये देश अवैध इमिग्रेशन और ड्रग्स की तस्करी रोकने में असफल रहे हैं। लेकिन अमेरिकी संविधान के हिसाब से टैक्स और टैरिफ लगाने का मूल अधिकार कांग्रेस के पास है, और यही अदालत के फैसले की सबसे बड़ी वजह बनी।

हालांकि, यह आदेश हर टैरिफ पर लागू नहीं होगा। स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो पर लगाए गए सुरक्षा शुल्क और चीन पर शुरुआती दौर में लगाए गए टैक्स इस दायरे से बाहर हैं। यानी कारोबारी जगत की अनिश्चितता पूरी तरह खत्म नहीं हुई है।

फेडरल अपील कोर्ट ने 7-4 के बहुमत से कहा कि राष्ट्रपति ने अपनी सीमा से बाहर जाकर कदम उठाया है। अदालत का कहना था कि आपातकालीन शक्तियां राष्ट्रपति के पास हैं, लेकिन इनमें टैरिफ लगाने का अधिकार शामिल नहीं है। हालांकि कोर्ट ने तुरंत इन्हें खत्म नहीं किया और 14 अक्टूबर तक यथावत रखने की अनुमति दी। इस तरह ट्रंप प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट में अपील का मौका मिल गया है।

ट्रंप प्रशासन की दलील थी कि 1970 के दशक में राष्ट्रपति निक्सन को भी इस तरह की छूट दी गई थी। लेकिन अदालत ने साफ किया कि कांग्रेस का मकसद कभी भी राष्ट्रपति को “असीमित शक्तियां” देने का नहीं था। न्यूयॉर्क ट्रेड कोर्ट ने भी इसी साल मई में यही टिप्पणी की थी। हालांकि चार जजों ने असहमति जताई और कहा कि 1977 का कानून असंवैधानिक नहीं है। इससे ट्रंप को सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला मिल गया।

इस फैसले का असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुलाई तक टैरिफ से अमेरिकी सरकार को 159 अरब डॉलर की कमाई हुई थी, जो पिछले साल से दोगुनी है। अगर ये टैरिफ पूरी तरह रद्द हो जाते हैं तो सरकार को अरबों डॉलर वापस लौटाने पड़ सकते हैं।

फैसले के बाद ट्रंप ने सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा कि अगर यह आदेश कायम रहा तो अमेरिका तबाह हो जाएगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने का ऐलान करते हुए कहा कि सभी टैरिफ लागू रहेंगे। ट्रंप ने फैसले को गलत और पक्षपाती करार दिया।

विशेषज्ञों का कहना है कि अपील कोर्ट का यह फैसला ट्रंप की “नेगोशिएशन पावर” को कमजोर कर सकता है। अब विदेशी सरकारें अमेरिकी दबाव के सामने झुकने के बजाय और सख्ती से खड़ी हो सकती हैं। आगे का रास्ता अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा कि राष्ट्रपति विदेशी सामानों पर टैक्स लगाने की कितनी शक्ति रखेंगे।

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